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उदयपुर से अब हमें रतलाम जाना था। सबसे उपयुक्त ट्रेन है उदयपुर- इन्दौर एक्सप्रेस (19330)। यह उदयपुर से रात साढे आठ बजे चलती है और रतलाम पहुंचती है सुबह चार बजे।
डिब्बे में एक सज्जन मिले। उन्हें भी रतलाम जाना था, दो बजे का अलार्म लगाकर और सबको बताकर कि उन्होंने दो बजे का अलार्म लगाया है, लेटने लगे। हमने कहा कि महाराज जी, चार बजे का अलार्म लगाइये, यह चार बजे रतलाम पहुंचेगी। सुनते ही जैसे उन्हें करंट लग गया हो, बोले- अरे नहीं, यह डेढ बजे जावरा पहुंचती है, वहां से तीस ही किलोमीटर आगे रतलाम है, दो बजे ही पहुंचेगी। हमने उन्हें आश्वस्त किया, तब वे चार बजे का नाम लेकर सोये।
दिल्ली से अहमदाबाद और वहां से मीटर गेज की गाडी में उदयपुर- पूरे दो दिन लगे। इस ट्रेन में पडते ही ऐसी नींद आई कि पूछो मत। लेकिन जब तक गाडी हिलती रही, तब तक ही नींद अच्छी आई। शायद जावरा के बाद जब यह दो घण्टे के लिये खडी हो गई, तो नींद भाग गई।
असल में यह डेढ बजे ही जावरा पहुंच जाती है। उसके बाद रतलाम से पहले लगभग दो घण्टे के लिये कहीं खडी हो जाती है, फिर चार बजे रतलाम पहुंचती है। इसमें रेलवे ने बडी इंसानियत भरी समझदारी का परिचय दिया है। रतलाम वाले यात्री दो बजे उठने की बजाय नींद पूरी करके चार बजे उठेंगे।
अब हमें एक और पैसेंजर ट्रेन यात्रा करनी थी- रतलाम से चित्तौडगढ के रास्ते कोटा तक। गाडी का समय था पौने दस बजे यानी साढे पांच घण्टे तक यहीं रहना है। शयनयान प्रतीक्षालय ढूंढकर उसमें जा पडे। अचानक मुझे कुछ ध्यान आया। बाकी दोनों से कहा कि क्या तुम्हें वातानुकूलित प्रतीक्षालय में जाना है। बोले कि हां, यहां लेटने की जगह कम है। मैं चूंकि पहले से ही शयनासन में था, मुझे जाने की आवश्यकता नहीं थी, उन्हें तरकीब बता दी- तुम्हारा टिकट तुम्हारे मोबाइल में है। जोड-घटा करके इसे एसी का टिकट बना लो।
अब प्रतीक्षालय के पहरेदार को क्या मालूम कि यह पीएनआर स्लीपर का है या एसी का। किराया भी ढाई सौ के स्थान पर ग्यारह सौ कर दिया। SL के स्थान पर 3A लिख दिया और पहुंच गये एसी वेटिंग रूम में। पहरेदार ने देखा कि बाकी सब तो ठीक है लेकिन इनका डिब्बा S1 क्यों है? S1 तो स्लीपर का डिब्बा होता है। चूंकि पहरेदार भी नींद में डूब रहा होगा, उन्हें अन्दर जाने दिया।
आठ बजे के आसपास दोनों ने मुझे जगाया। प्रतीक्षालय में हम तीनों ही थे। हाथों में चार समोसे थे। मैंने पूछा कि इनमें से मेरे कितने है। बोले कि हम तो खाकर आये हैं, ये सभी तेरे हैं। जब मैंने वे चारों समोसे खा लिये, तो बेचारे एक दूसरे का मुंह देखने लगे। कहने लगे कि असल में इनमें हमारे भी एक-एक समोसे थे।
ठीक समय पर गाडी चल पडी। रतलाम से आगरा किले तक चलने वाली हल्दीघाटी पैसेंजर (59811) में तीन डिब्बे शयनयान के भी होते हैं। हमारी सीटों पर कई महिलाएं बैठी थीं। हमें चूंकि खिडकी वाली सीटें चाहिये थीं और हमारे कन्धों पर भारी भारी कैमरे भी लटके थे, तो महिलाओं ने आसानी से सीटें खाली कर दीं। ये सभी महिलाएं अध्यापिकाएं थीं और मन्दसौर जा रही थीं।
गाडी चल पडी तो मेरे सामने जो स्टेशन आता, मैं फोटो ले लेता, नहीं तो नटवर से कह देता कि दूसरी तरफ स्टेशन है। महाराज तुरन्त दूसरी तरफ भागता और नामपट्ट का फोटो खींच लेता।
महिलाओं ने प्रशान्त से पूछा कि आप फोटो क्यों खींच रहे हो? प्रशान्त ने जवाब दिया कि हमारा एक प्रोजेक्ट है, उसी के लिये खींच रहे हैं। मेरी नजरें हालांकि खिडकी से बाहर की ओर थीं, लेकिन कान अन्दर ही थे। महिलाएं भी आखिर मास्टरनी थीं, तुरन्त दूसरा सवाल किया कि क्या प्रोजेक्ट है? इसका प्रशान्त क्या जवाब देता? उसने मुझे झिंझोडा और कहा कि इन्हें बता कि हमारा क्या प्रोजेक्ट है।
मैंने कहा कि हमारा कुछ भी प्रोजेक्ट ना है। स्वान्त सुखाय रेलयात्रा कर रहे हैं और फोटो खींच रहे हैं। कल अहमदाबाद से उदयपुर वाली लाइन पर थे, आज यहां हैं, कल पता नहीं कहां होंगे।
एक स्टेशन आया- जावरा। कल का जावर याद आ गया जहां समोसे मिले थे और ट्रेन की सभी सवारियां उन पर टूट पडी थीं।
आगे एक स्टेशन है- कचनारा। इसके एक प्लेटफार्म पर ‘कचनारा’ का पट्ट लगा है जबकि दूसरे पर ‘कचनारा रोड’ का। पता नहीं कि यह कचनारा है या कचनारा जाने वाली रोड।
मन्दसौर पहुंचे। इसका मन्दोदरी से कुछ सम्बन्ध बताते हैं। मेरठ में भी यही प्रचलित है कि मन्दोदरी मेरठ की थी। यहां सभी अध्यापिकाएं और नियमित यात्री उतर गये। डिब्बा लगभग खाली हो गया।
साढे बारह बजे नीमच पहुंचे। रतलाम से चलने के बाद मन्दसौर और नीमच मध्य प्रदेश के दो जिला मुख्यालय आते हैं। उसके बाद गाडी राजस्थान के चित्तौडगढ जिले में प्रवेश कर जाती है। जहां मन्दसौर का मेरठ से मन्दोदरी की वजह से सम्बन्ध है, वहीं नीमच भी सीधे मेरठ से सम्बन्धित है। एक लिंक ट्रेन चलती है नीमच से मेरठ सिटी तक। नीमच से चलकर यह गाडी चित्तौड के रास्ते कोटा पहुंचती है। कोटा में यह बान्द्रा-देहरादून एक्सप्रेस से मिल जाती है। फिर ये दोनों गाडियां एक साथ मेरठ सिटी तक आती हैं। लिंक एक्सप्रेस को मेरठ में छोडकर मुख्य गाडी देहरादून चली जाती है।
अब इस लिंक एक्सप्रेस के नीमच से आगे मन्दसौर तक विस्तार की घोषणा हो गई है।
नीमच से चलकर बिसलवास कलां और जावद रोड.. बस.. मध्य प्रदेश खत्म... राजस्थान शुरू। राजस्थान का पहला स्टेशन है निम्बाहेडा।
दो बजे चित्तौडगढ पहुंचे। जाते ही सबसे पहला काम था भोजन करना। ऐसा ना हो कि कल की तरह भूखें मर जायें। अगर चित्तौड में हमने लापरवाही दिखा दी तो अगला बडा स्टेशन घण्टों बाद बूंदी आयेगा। ट्रेन रुकते ही नटवर और प्रशान्त पूडी सब्जी ले आये।
चित्तौड से एक लाइन उदयपुर जाती है। हम रात इसी लाइन से उदयपुर से रतलाम गये थे।
अगला स्टेशन है चन्देरिया। यहां से एक लाइन अजमेर चली गई है। यहां गाडी आधे घण्टे से भी ज्यादा खडी रही।
आगे एक स्टेशन आया जोधपुरिया। इस स्टेशन का नाम न तो रेलवे की वेबसाइट पर है, ना किसी अन्य टाइम टेबल बताने वाली साइट पर और न ही पश्चिमी जोन की टाइम टेबल में। इस तरह के इधर कई स्टेशन हैं।
एक स्टेशन है ताम्बावती नगरी।
ऊपरमाल में गाडी घण्टे भर तक खडी रही। स्टेशन पर काफी सारे लंगूर थे, नटवर ने जमकर फोटो खींचे।
बूंदी से पहला स्टेशन है श्रीनगर। यह स्टेशन चूंकि पुराने जमाने की मीटर गेज लाइन पर है, इसलिये जाहिर है कि कश्मीर वाले श्रीनगर से बहुत पुराना है। चूंकि दो स्टेशनों के नाम एक से नहीं रखे जाते, फिर कश्मीर वाले श्रीनगर का नाम क्या है?
एक श्रीनगर और बनने वाला है- ऋषिकेश कर्णप्रयाग लाइन पर। उद्घाटन हो चुका है।
बूंदी से काफी पहले ही एहसास होने लगा था क्योंकि हम घने पहाडी इलाके से गुजर रहे हैं। रास्ते में एक सुरंग भी आई। बूंदी का किला भले ही भारतीयों में प्रसिद्ध न हो, विदेशियों में यह बहुत प्रसिद्ध है। मैंने इस किले को अभी तक नहीं देखा है, देखना है किसी दिन। स्टेशन पर विदेशियों की भी अच्छी संख्या थी।
बूंदी के बाद तालेडा और गुडला। गुडला में गाडी सही समय पर पहुंची। इससे अगला स्टेशन ही चम्बल पार करके कोटा है लेकिन समय सारणी इस तरह की बनी है कि घण्टे भर से ज्यादा इसे गुडला पर खडे रहना पडा।
कोटा के अधिवक्ता श्री दिनेशराय द्विवेदी जी ने कहा कि समयाभाव के कारण मुलाकात नहीं हो सकती।
इस गाडी के इन स्लीपर डिब्बों की खासियत थी कि इसमें हर कूपे में दो दो चार्जिंग स्विच लगे हैं। यानी एक डिब्बे में बीस चार्जिंग स्विच। भीड न होने की वजह से मैंने लैपटॉप खोल लिया और यात्रा-लेखन शुरू कर दिया।
मेरा वापसी का आरक्षण मेवाड एक्सप्रेस से था, नटवर का कोटा-जयपुर पैसेंजर से जबकि प्रशान्त का भोपाल-जोधपुर पैसेंजर से। सबसे पहले नटवर गया, उसके दस मिनट बाद मैं और प्रशान्त पता नहीं कब गया।