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युद्ध संग्रहालय से पिटुक गोनपा करीब दो किलोमीटर कारगिल रोड पर है। मैं पैदल ही चलता चलता पहुंच गया।
पहले भी कह चुका हूं कि मन बुरी तरह उदास था, मैं किसी एकान्त धूपदार स्थान पर घण्टे भर के लिये बैठना चाहता था। पिटुक के पास इसी पहाडी पर एक छोटा सा मैदान है जिसके एक सिरे पर बुद्ध मूर्ति है। मैं वहां चला गया। अभी भी हर जगह बर्फ थी लेकिन पिछले कई दिनों से लगातार अच्छी धूप निकलने के कारण यह कितने ही स्थानों से पिघल चुकी थी। मैदान तक जाने वाली सीढियों में अन्तिम कुछ सीढियां बर्फरहित थी। यह स्थान मुझे बैठने के लिये उपयुक्त लगा।
घण्टे भर तक बैठा रहा, साथ कुछ किशमिश लाया था, खाता रहा। हवाई पट्टी यहां से नातिदूर है। इस दौरान वायुसेना का एक विमान भी उतरा।
घण्टे भर बाद यहां से निकलकर पिटुक गोनपा में चला गया। कोई नहीं दिखा। कुछ देर बाद एक स्थानीय परिवार भी गोनपा देखने आया। मैं उनके पीछे पीछे हो लिया। इससे पहले मुझे डर था कि कोई लामा मुझे या मेरे जूतों को देखकर भगा ना दे, लेकिन इनके पीछे पीछे लगे रहने से यह चिन्ता दूर हो गई। ये लोग मन्त्रों से भरे पहियों यानी मानी को घुमाते हुए चल रहे थे। मेरी इनमें कोई श्रद्धा नहीं थी।
यह गेलुक्पा सम्प्रदाय से सम्बन्धित है और इसकी स्थापना ग्यारहवीं शताब्दी में हुई थी। यह काफी विशाल है और इसमें मुख्य प्रतिमा भगवान बुद्ध की है। प्रतिमा इस समय एक कमरे में ताले में बन्द थी। कमरे के बाहर सोयाबीन के तेल की बोतलें काफी मात्रा में थी। गोनपा में सोयाबीन का तेल चढाया जाता है।
इस पहाडी के सर्वोच्च स्थान पर भी कुछ बना है। हिन्दू इसे काली माता का मन्दिर कहते हैं जबकि मुझे वहां जाने पर कहीं भी हिन्दुत्व के लक्षण नहीं दिखे। सोयाबीन की बोतलों का यहां भी विशाल संग्रह है। सोयाबीन के बीच में एकाध सरसों के तेल की शीशी भी थी। अन्दर कोल्ड ड्रिंक से लेकर अंग्रेजी दारू तक की बोतलें मैंने यहां देखीं। दारू शायद काली के लिये थी। सिद्ध हो गया कि यह काली मन्दिर भी है।
केवल काली मन्दिर के अन्दर फोटो खींचने की मनाही थी। पुजारी, जिसे लामा भी कह सकते हैं, ने मुझे देखकर चार दाने चिबोनी के दे दिये और बडी अजीब सी शक्ल बना ली। इशारा काफी था। मैंने एक रुपया निकालने के चक्कर में जेब में हाथ डाला और पांच का सिक्का निकल गया। काली दरबार में पांच रुपये जमा करने पडे।
वापस मेन रोड पर आया। टैक्सी पकडी और दस रुपये में मेन चौक पर, यहां से सडक पार करके चोगलमसर वाली टैक्सी ली और जेल तक जाने के पन्द्रह रुपये और लगे।
दिल्ली से चलने से पहले मुम्बई से एक फोन आया था कि लेह से सिन्धु जल लेकर आना है। अभी मेरे पास काफी समय था, कल फ्लाइट वैसे तो ग्यारह बजे के बाद है लेकिन पता नहीं समय मिल सके या नहीं। इसलिये यह कर्तव्य आज ही पूरा करना था। जिस बोतल को मैं दिल्ली से अब तक पानी पीने के लिये प्रयोग कर रहा था, उसी बोतल को लेकर पुनः सिन्धु घाट पहुंचा। बोतल भरने में पसीने छूट गये।
पिछले चार दिनों से मैं लेह में ही घूम रहा था, अब बोरियत होने लगी थी। रोजाना वही दिनचर्या, वही नजारे...
कल सुबह यात्रा समाप्त करके दिल्ली के लिये उड जाना है।
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सामने पहाडी पर पिटुक गोनपा है। |
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लेह हवाई पट्टी |
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पिटुक गोनपा का प्रवेश द्वार |
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गोनपा के अन्दर |
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इसी में बुद्ध प्रतिमा है और ताला बन्द है। |
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सोयाबीन के तेल की शीशियां |
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काली माता मन्दिर से दिखता पिटुक गोनपा |
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यह मन्त्रों वाली मानी है। इस पर ‘ॐ मणि पद्मे हुं’ स्पष्ट पढा जा सकता है। |
लद्दाख यात्रा श्रंखला
1. पहली हवाई यात्रा- दिल्ली से लेह
2. लद्दाख यात्रा- लेह आगमन
3. लद्दाख यात्रा- सिन्धु दर्शन व चिलिंग को प्रस्थान
4. जांस्कर घाटी में बर्फबारी
5. चादर ट्रेक- गुफा में एक रात
6. चिलिंग से वापसी और लेह भ्रमण
7. लेह पैलेस और शान्ति स्तूप
8. खारदुंगला का परमिट और शे गोनपा
9. लेह में परेड और युद्ध संग्रहालय
10. पिटुक गोनपा (स्पिटुक गोनपा)
11. लेह से दिल्ली हवाई यात्रा (6 मार्च)