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एक बार मैं और विधान गढवाल के कल्पेश्वरक्षेत्र में भ्रमण कर रहे थे, तो एक विदेशी मिला। नाम था उसका केल्विन- अमेरिका में बढई है और कुछ समय बढईगिरी करके जमा हुए पैसों से दुनिया देखने निकल जाता है। उसने बताया कि वो कई महीनों से भारत में घूम रहा है। विधान ठहरा राजस्थानी... लगे हाथों पूछ बैठा कि राजस्थान में कौन सी जगह सर्वोत्तम लगी। केल्विन ने बताया कि एक किला है। उसने खूब दिमाग दौडाया लेकिन नाम नहीं बता सका।
हमने अपनी तरफ से भी नाम गिनाये- आमेर, कुम्भलगढ, चित्तौडगढ, मेहरानगढ, जैसलमेर आदि लेकिन वो सबको नकारता रहा। आखिरकार अचानक बोला- बण्डी- उस किले का नाम है बण्डी। हम हैरान हो गये कि केल्विन की नजर में सर्वोत्तम बण्डी नामक किला है लेकिन यह है कहां। हमने भी पहली बार बण्डी नाम सुना। लेकिन जल्द ही पता चल गया कि वो बूंदी के किले की बात कर रहा है। बण्डी यानी बूंदी।
तभी से मुझे एक बात जंच गई कि बूंदी का किला एक बार जरूर देखना चाहिये। आज जयपुर में था तो बूंदी जाने के विचार मन में आने लगे। सुबह जब होटल से बाहर निकला तो बूंदी के लिये ही निकला। रात टोंक में रुकना तय हुआ।
चलते चलते होटल के रिसेप्शन में अखबार पर नजर पडी- पुष्कर में मेले का शुभारम्भ।
बस अड्डे के पास ही मैंने कमरा लिया था। जब यहां से साइकिल से टोंक रोड के लिये निकला तो कुछ दूर रेलवे लाइन के साथ साथ चलना हुआ। अब दिमाग से बूंदी उतरने लगा था और पुष्कर चढने लगा।
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रात किशनगढ में रुका।
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22 नवम्बर 2012 की दोपहर बाद मैं पुष्कर में था। ब्रह्मा नगरी पुष्कर। भारत में ब्रह्मा के कुछ ही गिने चुने मन्दिर हैं, उनमें पुष्कर भी है।
एक बार ऐसा हुआ कि ब्रह्माजी परेशानी में पड गये। उन्हें यज्ञ करना था और कोई भी जगह पसन्द नहीं आई। या फिर बहुत सी जगहें पसन्द आ गई होंगी। मतलब वे समझ नहीं पा रहे थे कि यज्ञ कहां किया जाये। कोई और होता तो वो शिवजी से पूछ आता। राक्षस भी शिवजी से ही शक्ति अर्जित करते थे लेकिन ब्रह्मा ठहरे ‘बडे देवता’। वे भला शिवजी से कैसे पूछ सकते थे? बडों के साथ यही परेशानी होती है कि वे खुद से ज्यादा बुद्धिमान किसी को नहीं समझते। नहीं तो किसी से भी अपनी परेशानी बताते, हल जरूर निकलता। टॉस नहीं करना पडता।
उन्होंने टॉस किया। कमल का फूल लिया और उसे धरती पर गिरा दिया। अब ब्रह्मा जी का दुर्भाग्य कि वो गिरा पुष्कर में। यानी मरुस्थल में। यह घटना पांच छह हजार साल पुरानी है, तब भी यहां मरुस्थल ही रहा होगा।
ब्रह्माजी कमल के फूल के साथ साथ स्वर्ग से नीचे उतरे होंगे। देखा कि कमल मरुस्थल में गिरा है, माथा पकड कर बैठ गये होंगे। पानी नहीं है, यज्ञ कैसे होगा। लेकिन फिर वही ‘बडा होने’ वाली बात याद गई होगी और जिद कर बैठे कि यही इसी मरुस्थल में यज्ञ होगा। उनकी पत्नी सावित्री ने खूब समझाया होगा कि पतिदेव, मरुस्थल में कुदरत पहले से ही यज्ञ करती रही है, आपको अलग से दूसरा यज्ञ करने की जरुरत नहीं है, लेकिन ब्रह्मा नहीं माने। यही एक कारण रहा होगा ब्रह्मा-सावित्री के मन-मुटाव का, नहीं तो ब्रह्मा को श्राप नहीं मिलता।
फिर वही हुआ जो आज भी हर घर में होता है। पति-पत्नी में मन-मुटाव हो और पति कोई योजना बनाये तो पत्नी साथ नहीं देगी। सावित्री ने भी ब्रह्मा का साथ नहीं दिया। यज्ञ में नहीं गई। इसमें सावित्री का होना जरूरी था, ब्रह्मा बडी मुश्किल में पड गये।
उस समय बहु-विवाह प्रथा थी, तलाक जैसा कोई प्रावधान नहीं था कि पहले पहली वाली को तलाक दो, तब दूसरा विवाह कर सकते हैं। ब्रह्मा ने सावित्री के न आने पर दूसरा विवाह कर लिया और यज्ञ सम्पन्न होने लगा। सावित्री बेचारी उस समय ‘कोपभवन’ में बैठी होगी कि ब्रह्मा मुझे मनाने आयेंगे, मिन्नते करेंगे। जब पता चला कि उन्होंने दूसरा विवाह कर लिया तो वे आग-बबूला हो गई जोकि स्वाभाविक था। तब ब्रह्मा को सावित्री ने श्राप दिया कि तेरी कहीं पूजा नहीं होगी। बाद में ब्रह्मा के माफी मांगने पर पुष्कर में पूजा की अनुमति दे दी।
हालांकि अभी भी भारत में ब्रह्मा के कई मन्दिर हैं जिनमें से पुष्कर के अलावा गुजरात में खेडब्रह्म भी है। एक दो और भी हैं।
तो जी, यह थी पुष्कर की कथा। बाद में हालांकि अजयमेरु नामक नगर भी बसा। ख्वाजा साहब ने अजमेर को जबरदस्त प्रसिद्धि दे दी। पुष्कर हिन्दुओं का प्रतीक बन गया और अजमेर मुसलमानों का। दोनों के बीच में नाग पर्वत है जो दोनों मजहबों को अलग अलग करने का काम करता है।
जब बाइपास के रास्ते पुष्कर जाते हैं तो कुछ पहले बूढा पुष्कर पडता है। यहां भी एक छोटा सा कुण्ड है और मन्दिर है।
पुष्कर में दो दिन पहले कार्तिक मेला शुरू हो चुका था, इसलिये काफी चहल पहल थी। विदेशी तो यहां सालभर आते ही रहते हैं।
मेला मैदान और ब्रह्मा मन्दिर के सामने से होता हुआ मैं अजमेर जाने वाली सडक पर पहुंचा। यहां एक आश्रम में ढाई सौ रुपये में कमरा मिल गया। अब यही साइकिल खडी करके पैदल पुष्कर देखने निकल पडा। साइकिल साथ होने से कई बन्दिशें लग जाती हैं।
जब अन्धेरा होने पर वापस लौटा तो मन बदल चुका था। इससे पहले मन में यही था कि बडी प्रसिद्ध जगह है, मेला भी है तो काफी भीड मिलेगी और आज फटाफट देख-दाखकर यहां से निकल लेना है। लेकिन अब सोच लिया कि कल भी पुष्कर में ही रुकूंगा और इसके साथ जीऊंगा। पुष्कर ने मन जीत लिया।
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किशनगढ से पुष्कर जाने वाली बाइपास रोड |
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बूढा पुष्कर |
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बूढा पुष्कर |
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बूढा पुष्कर |
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मेला मैदान के पास |
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मेला मैदान |
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अपनी सवारी |
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बाजार |
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पुष्कर सरोवर |
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मुख्य ब्रह्मा घाट |
और अब आज का सर्वश्रेष्ठ फोटो

अगले भाग में जारी...
जयपुर पुष्कर यात्रा
1. और ट्रेन छूट गई
2. पुष्कर
3. पुष्कर- ऊंट नृत्य और सावित्री मन्दिर
4. साम्भर झील और शाकुम्भरी माता
5. भानगढ- एक शापित स्थान
6. नीलकण्ठ महादेव मन्दिर- राजस्थान का खजुराहो
7. टहला बांध और अजबगढ
8. एक साइकिल यात्रा- जयपुर- किशनगढ- पुष्कर- साम्भर- जयपुर