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Channel: मुसाफिर हूँ यारों
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चुनार का किला व जरगो बांध

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अगले दिन वाराणसी से निकलकर हम तीनों चन्द्रेश (वेबसाइट) के गांव की तरफ चल पडे। आज चूंकि एक ही बाइक थी इसलिये तीनों उसी पर सवार हो गये। दूसरी बाइक हमें गांव से मिलेगी। वाराणसी से करीब पच्चीस किलोमीटर दूर मिर्जापुर जिले में उनका गांव है। कल पूरे दिन हम बाइकों पर घूमे थे, आज फिर से बाइक ही झेलनी पडेगी। हालांकि मैं पहले ही बाइक पर लम्बे समय तक बैठे रहने के पक्ष में नहीं था, लेकिन फिर सोचा कि आज बाइकों की वजह से हमें देश के उन हिस्सों को देखने का सौभाग्य मिलेगा, जो कथित रूप से पर्यटक स्थलों की श्रेणी में नहीं आते। बिल्कुल नई जगह।
आज हमें इलाहाबाद-बनारस जैसे अति प्रसिद्ध जगहों के बीच की जमीन पर विचरण करना था, लेकिन गंगा के दक्षिण में। सबसे पहले शुरूआत होती है रामनगर किले से। यह किला वाराणसी के गंगापार स्थित रामनगर कस्बे में स्थित है। यह कभी काशी नरेश की राजधानी हुआ करता था। आजकल इसमें सैन्य गतिविधियां चल रही हैं, इसलिये हम इसके अन्दर नहीं गये। वैसे बताते हैं कि इसमें चोखेर बाली फिल्म की शूटिंग भी हुई थी और इसमें एक संग्रहालय भी है।
इसके बाद नम्बर आता है जरगो बांध का। यह चुनार से करीब 18 किलोमीटर दूर है। हमें चन्द्रेश और उनके गांव के ही एक और बाइकर की वजह से चुनार नहीं जाना पडा। उन्होंने सीधे इमलिया बाजार होते हुए हमें जरगो पहुंचा दिया।
यह जरगो नामक नदी पर बना हुआ है। दूसरी पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत इसे बनवाया गया था। इसका असल मकसद सिंचाई है, जिसे यह बखूबी पूरा करता है। कई छोटी छोटी नहरें निकाली गई हैं, जिससे आसपास के खेतों की सिंचाई की जरुरतें पूरी होती हैं। चन्द्रेश ने बताया कि यह बांध पूरी तरह मिट्टी का बना हुआ है।
इसके बाद करीब 18 किलोमीटर का सफर तय करके पहुंचते हैं चुनार। चुनार भारतीय रेल के नक्शे में एक जंक्शन स्टेशन है। यह इलाहाबाद-मुगलसराय खण्ड पर है और यहां से एक तीसरी लाइन चोपन चली जाती है। चूंकि चुनार के दक्षिण में विन्ध्याचल की पहाडियां हैं, इसलिये इस रेल लाइन पर सफर करना काफी मजेदार होगा।
चुनार का किला यानी चुनारगढ का किला। देवकीनन्दन खत्री ने अपने उपन्यास चन्द्रकान्ता में इसे अमर कर दिया। हालांकि इसका महत्व और भी पहले से है। भर्तृहरि का नाम आपने सुना होगा। वे राजा विक्रमादित्य के भाई थे। भर्तृहरि भी कभी उज्जैन के राजा थे। उन्हें जब वैराग्य हो गया तो उन्होंने राजपाट विक्रमादित्य को दे दिया। विक्रमादित्य ने अपने भाई के लिये इस किले का निर्माण कराया। भर्तृहरि में आखिरी सांस यानी योगियों की भाषा में कहें तो समाधि यही इसी किले में ली। आज भी किले में उनकी यादगार बनी है।
चन्द्रेश के अनुसार यह इलाका सत्यकाशी तीर्थ के नाम से जाना जाता है। इस तीर्थ को विकसित करने की योजना चल रही है। चूंकि मेरी दिलचस्पी इस बात में ज्यादा नहीं है, इसलिये ज्यादा जानने के लिये यहां क्लिक करें
जरगो बांध के बारे में और ज्यादा जानने के लिये यहां क्लिक करें

वाराणसी में गंगा पर बना राजघाट पुल। इस पर नीचे ट्रेन चलती है और ऊपर सडक।

राजघाट पुल से दिखते घाट


रामनगर किला यानी काशी नरेश का किला

किले के सामने रखी तोप

चन्द्रेश और जाटराम

जरगो बांध पर

जरगो बांध पर चन्द्रेश





अतुल

विशाल जरगो बांध










जरगो बांध में एक प्रतिबिम्ब




चुनार किले का प्रवेश द्वार

किले के अन्दर

किले में एक सुरंग

इसमें भी सैन्य गतिविधियां चल रही हैं जिस कारण किला पर्यटकों के लिये आंशिक रूप में ही खुला है।


किले से दिखती गंगा


किले में एक कुआं। कुएं में नीचे जाने के लिये सीढियां दिख रही हैं। उन सीढियों तक एक भूमिगत सुरंग द्वारा पहुंचा जा सकता है। आपको ले चलूंगा उस सुरंग तक जो कुएं के अन्दर जाती है।

यह वो सुरंग है जो कुएं के ऊपर से दिखती है।

यह रहा कुएं से कुछ दूर उस सुरंग में जाने का रास्ता


उस सुरंग में लाखों की संख्या में चमगादड हैं, इसलिये हम नीचे नीचे कुएं तक नहीं पहुंच सके।

किले से दिखती गंगा
अगले भाग में जारी...

लखनऊ- बनारस यात्रा
1.वर्ष का सर्वश्रेष्ठ घुमक्कड- नीरज जाट
2.बडा इमामबाडा और भूल-भुलैया, लखनऊ
3.सारनाथ
4.बनारस के घाट
5.जरगो बांध व चुनार का किला
6.खजूरी बांध और विन्ध्याचल


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