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Channel: मुसाफिर हूँ यारों
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छत्तीसगढ यात्रा- मूरमसिल्ली बांध

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28 फरवरी 2013
मैं राजेश तिवारी जी के घर पर था और सुबह आठ बजे तक डब्बू को आ जाना था। अब मुझे अगले तीन दिनों तक डब्बू के ही साथ घूमना है। मेरी यह यात्रा डब्बू की वजह से ही सम्पन्न हुई, नहीं तो मानसून के अलावा छत्तीसगढ घूमना मैं सोच भी नहीं सकता था।
दस बजे डब्बू जी आये और हम शीघ्र ही तिवारी जी को अलविदा कहकर चलते बने। भोरमदेव जाने की योजना थी, जो जल्दी ही रद्द करनी पडी। तय हुआ कि सिहावा चलो। डब्बू ने बताया कि सिहावा में महानदी का उद्गम है। इसके अलावा उसी दिशा में सीतानदी अभयारण्य, राजिम, बारनावापारा और सिरपुर भी पडेंगे। सभी जगहें एक ही झटके में देख लेंगे।
यह खबर तुरन्त ही फेसबुक पर प्रसारित कर दी। इसे देखकर कसडोल के रहने वाले सुनील पाण्डे जी ने आग्रह किया कि सिरपुर आओ तो याद करना। मैंने पूरी यात्रा भर इस आग्रह को याद रखा। हालांकि बाद में समयाभाव के कारण सिरपुर जाना नहीं हो पाया।
मोटरसाइकिल से भिलाई के बीच से निकलते गये। रास्ते में हनुमान मन्दिर पडा। डब्बू ने बताया कि भिलाई रूस द्वारा बसाया नगर है। वे लोग देवताओं को नहीं मानते, इसलिये जब उन्होंने इस मन्दिर को यहां से हटाने की कोशिश की तो उनकी हर कोशिश नाकाम हो गई। यहां अस्पताल बनाया जाना था, अस्पताल में तेज आवाज करना प्रतिबन्धित होता है इसलिये मन्दिर के घण्टे भी प्रतिबन्धित थे। जब हनुमानजी टस से मस नहीं हुए, तो मन्दिर को यथावत रहने दिया गया। डब्बू ने बताया कि आज जब भी अस्पताल में कोई ऑपरेशन होता है, तो डॉक्टर यहां आशीर्वाद मांगने आते हैं।
डब्बू के साथ उनके घर पहुंचे। उनकी कपडों की दुकान है। नीचे गोदाम है और ऊपरी मंजिल पर ठिकाना। वैसे पत्रकार भी हैं, इसलिये बोलने में महारथी हैं। मेरी यात्रा के लिये उन्होंने अपनी कार और एक ड्राइवर का इंतजाम कर दिया था। चलने से ऐन पहले ड्राइवर मुकर गया, इसलिये डब्बू का मूड बिगडना तय था। कार का इंतजाम उन्होंने इसलिये किया क्योंकि मैंने मोटरसाइकिल से चलने से मना कर दिया था। कल पूरे दिन मोटरसाइकिल से ही यात्रा की थी। मैं नहीं चाहता था कि अगले तीन दिनों तक मुझे फिर मोटरसाइकिल पर ही बैठना पडे।
ड्राइवर के मना करने पर जब डब्बू ने कहा कि वो मुकर गया है, चलो मोटरसाइकिल से ही चलते हैं तो मेरे होश उड गये। डब्बू के अनुसार- “नीरज का चेहरा फोटो खींचने लायक हो गया था।” यह सब इतनी जल्दी हुआ कि मैं मना नहीं कर सका। लेकिन जब उन्होंने कार स्टार्ट की तो कुछ जान में जान आई। यह खुशी ज्यादा देर तक नहीं बनी रह सकी जब उन्होंने कहा कि हम रायपुर में कार छोड देंगे और मोटरसाइकिल ले लेंगे।
रायपुर बाइपास के पास पता चला कि हमारे साथ सुधीर तम्बोली भी साथ चलेगा। अब यहां पुनः मुझे कार की उम्मीदें दिखने लगीं। आगे जब सुधीर कार में बैठ गया और डब्बू ने उससे मेरे होश उडने वाली बात बताई तो बडी राहत मिली। अब इतना पक्का हो गया कि डब्बू मजे ले रहा था। यात्रा कार से ही होगी और डब्बू कार चलायेगा।
सिहावा लक्ष्य था। वहां जाने के लिये धमतरी होकर जाना होता है। मैंने गूगल मैप में रास्ता देखा तो दो रास्ते दिखे- एक अभनपुर वाला लम्बा घुमावदार रास्ता, दूसरा सीधा रास्ता। मेरे कहे अनुसार सीधे वाले रास्ते से चल पडे।
करीब पच्चीस किलोमीटर चलने पर एक तिराहा आया। सीधे सडक पाटन जा रही थी और बायें मुडकर धमतरी। मुडते ही स्वागत द्वार दिखा- धमतरी जिले में आपका स्वागत है। डब्बू की घबराई सी आवाज सुनाई पडी- अब हम नक्सली इलाके में घुस रहे हैं।
छत्तीसगढ अपनी नक्सल गतिविधियों के लिये प्रसिद्ध है। अगर कभी सुरक्षा बलों या पुलिस वालों पर हमले की खबर आये तो समझ लेना कि या तो वह जगह कश्मीर है या छत्तीसगढ। आज भी दुर्ग में जब मैंने अखबार पढा तो मुख्य खबर थी- जगदलपुर में बारूदी सुरंग से सुरक्षा बलों की एक गाडी को उडा दिया। फोटो भी था जिसमें गाडी मिट्टी में आधी धंसी हुई थी। घर से फोन आया। जब उन्हें पता चला कि मैं छत्तीसगढ की यात्रा पर हूं, तो उनके भी होश उड गये। उन्होंने बस इतना ही कहा- सम्भलकर रहना।
धमतरी से कुछ पहले एक दुकान पर चाय पी। डब्बू के घर का बना पर्याप्त खाना भी हमारे साथ ही यात्रा कर रहा था। मेरी योजना थी कि जंगल में कहीं अच्छी जगह पर यानी पानी के किनारे बैठकर खाना खाया जायेगा।
धमतरी से करीब तीन चार किलोमीटर पहले अभनपुर से आने वाली मुख्य सडक भी मिल जाती है। गूगल मैप अभी भी साथ था। एक स्थान पर उसने कहा कि अगर सिहावा या मूरमसिल्ली जाना है, तो बायें मुड जाओ। हम नगरी वाली सडक पर बायें मुड गये।
धमतरी से निकले तो डब्बू के पास एक फोन आया। वो सुनील वर्मा जी का फोन था। सुनील भाई छत्तीसगढ के अच्छे ज्ञाता हैं। एक-एक सडक की उन्हें जानकारी है। डब्बू के अनुसार, हमारी यात्रा के आयोजक सुनील भाई ही हैं। ये सभी लोग पत्रकार हैं, इसलिये कार पर भी सामने लिखा था- PRESS. मुझे बस यही बात खतरनाक लग रही थी कि इनकी गाडी पर प्रेस लिखा है। डब्बू ने बताया कि भाई ने यहां के हर थाने और हर नाके में खबर दे रखी है कि हम यहां से गुजरेंगे। तभी तो हमें कहीं नहीं रोका गया। मुझे यह बात अतिश्योक्तिपूर्ण लगी क्योंकि पूरे रास्ते भर मैंने किसी भी बैरियर या नाके पर ट्रकों के अलावा कोई भी गाडी नहीं रुकी देखी। लगने लगा कि डब्बू जानबूझकर ‘अफवाह’ फैला रहा है।
धमतरी से निकलकर जब भाई का फोन आया तो डब्बू उन्हें नहीं बता पाया कि हम कहां हैं। तम्बोली को भी नहीं पता था। मुझे पता था, इसलिये फोन उनके हाथ से छीना और बताया- हम धमतरी से निकल चुके हैं और महानदी के पुल पर पहुंचने वाले हैं। भाई ने निर्देश दिया कि मूरमसिल्ली के लिये आगे एक सडक दाहिने जाती मिलेगी, उसी पर चल देना। मुझे उनके बताने से पहले ही सारा रास्ता अच्छी तरह मालूम था। गूगल मैप जिन्दाबाद।
यह दाहिने वाली सडक आगे नरहरपुर जा रही है जबकि सीधी सडक नगरी। हम नरहरपुर वाली पर चल पडे। कुछ आगे जाने पर एक पतली सी सडक अलग होती दिखी। इसके बराबर में एक पट्ट लगा था- मूरमसिल्ली बांध एक किलोमीटर। गाडी इस पर चल दी।
कुछ दूर जाने पर जब चढाई आई तो डब्बू के हाथ पांव फूल गये। गाडी रोकी और वहीं घूम रहे एक लडके से नरहरपुर का रास्ता पूछा। मुझे यह बात बडी हास्यपूर्ण लगी क्योंकि हम नरहरपुर वाली सडक को भी कुछ सौ मीटर पीछे छोडकर मूरमसिल्ली वाली सडक पर चल रहे थे। लडके ने बताया कि आप नरहरपुर वाली सडक को पीछे छोडकर आ गये हैं। डब्बू ने विस्मय से मेरी तरफ देखा। मैंने कहा कि हमें अभी मूरमसिल्ली बांध जाना है, इससे पूछो कि बांध कितना दूर है। पता चला सामने है।
मूरमसिल्ली बांध सिलियारी नदी पर बना है। यह नदी महानदी की एक सहायक नदी है। इस पर विद्युत उत्पादन तो नहीं होता, लेकिन इसका पानी सिंचाई के काम आता है।
धमतरी के बाद दृश्य में परिवर्तन आ गया था। जब से महानदी पार की है, तब से रास्ता जंगल से होकर निकलने लगा। सडक इतनी शानदार बनी है कि कोई गड्ढा तो दूर गड्ढी तक नहीं दिखी। सडक पर यातायात भी कम ही था। मूरमसिल्ली बांध भी इसी तरह जंगल में मंगल के समान है। पास में मूरमसिल्ली नाम का एक गांव जरूर है। आसपास और भी गांव हैं, लेकिन कोई शहर या कस्बा नहीं। रुकने का तो कोई इंतजाम है ही नहीं। नजदीकी ठिकाना धमतरी है। मोबाइल फोन कभी मिल जाता है, कभी मिलता नहीं।
बांध से कुछ नीचे उतरकर एक पार्क जैसी जगह पर बडे से चबूतरे पर बैठकर अपने बर्तन खोल लिये गये। खाना उदरस्थ किया गया। सब्जी कम थी, इसलिये कुछ चावल बच गये। यह वनभोज यादगार रहा।
डब्बू ने बताया कि इस बांध को यहां मूरमसिल्ली बांध कहते हैं और इसके परले सिरे पर सिहावा है, इसलिये इसी को वहां सिहावा बांध कहते हैं। मुझे पता था कि सिहावा बांध महानदी पर है, जबकि मूरमसिल्ली महानदी पर नहीं है। इसलिये यह बांध सिहावा बांध नहीं हो सकता। मैंने इसका विरोध किया तो डब्बू ने कहा कि मत मान, हम तुझे साक्षात दिखा देंगे। मैंने पुनः विरोध किया कि चाहे आप मूरमसिल्ली में खडे हो या सिहावा में। आपके सामने अथाह जलराशि रहेगी, तो आप कैसे कह सकते हो कि ये दोनों जलराशि एक ही हैं। बोले कि खुद देख लेना।
वापसी में एक किलोमीटर इसी पतली सी सडक पर चले। फिर नरहरपुर वाली सडक आ गई। नरहरपुर की ओर चल पडे। मैं डब्बू के भरोसे ही चला जा रहा था। डब्बू एक नम्बर का वाचाल है और कूप-मण्डूक भी। उनके कूप का नाम है दुर्ग-रायपुर। कूप के बाहर की दुनिया कैसी है, इस बारे में उसे कोई अन्दाजा नहीं है, केवल सुनी सुनाई बातों पर यकीन करता है। ये बातें सच्चाई कम अफवाह ज्यादा होती हैं। उसकी वाचालता का आलम यह था कि जब मैंने कहा कि भाई तुम्हारे अन्दर एक ही कमी है- ज्यादा बोलना तो उसने तपाक से कहा- दुनिया में ऐसी कोई ताकत नहीं है, जो मुझे बोलने से रोक सके।


भिलाई में हनुमान मन्दिर

धमतरी की ओर



मूरमसिल्ली पहुंचने वाले हैं।

डब्बू मिश्रा वनभोज की तैयारी में





मूरमसिल्ली बांध को मोडमसिल्ली भी कहते हैं। बायें से डब्बू मिश्रा, नीरज जाट और सुधीर तम्बोली।








यह है आज का सर्वोत्तम क्लिक। यह बच्चा बडी तेजी से हरकत कर रहा था, हाथ पैर चला रहा था। इसकी मां भी लगातार नजदीक आती जा रही थी। इसलिये बच्चे की गतिविधियों का पूर्वानुमान करते हुए कैमरे का जूम भी लगातार कम करना पड रहा था। आखिरकार यह फोटो हाथ लगा।


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इस नक्शे में A दुर्ग, B रायपुर बाइपास, C धमतरी और D मूरमसिल्ली बांध है। दुर्ग से बांध की कुल दूरी 126 किलोमीटर है। वैसे हम दुर्ग से सीधे धमतरी भी जा सकते थे, लेकिन तम्बोली को रायपुर से लेना था।

अगले भाग में जारी...

छत्तीसगढ यात्रा
1. छत्तीसगढ यात्रा- डोंगरगढ
2. छत्तीसगढ यात्रा- मूरमसिल्ली बांध


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